विशेषज्ञों ने बताए आपदा प्रबंधन के तरीके,लैंडस्लाइड ट्रीटमेंट एंड इरोसन कंट्रोल वर्क्स इन हिल्स’ पर चर्चा हुई।

उत्तराखंड वन संसाधन प्रबंधन परियोजना (जायका) की ओर से बृहस्पतिवार को राजपुर रोड स्थित एक होटल में राष्ट्रीय स्तरीय की कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस कार्यशाला का विषय ‘लैंडस्लाइड ट्रीटमेंट एंड इरोसन कंट्रोल वर्क्स इन हिल्स’ पर चर्चा की गई। कार्यशाला में बतौर मुख्य अतिथि राज्य में वन विभाग के काबीना मंत्री श्री सुबोध उनियाल ने प्रतिभाग किया। इस दौरान देश विदेश से आए विशेषज्ञों ने भाग लिया और आपदा प्रबंधन के तरीके बताए। शुक्रवार को सभी विशेषज्ञ साईट्स का स्थलीय भ्रमण करेंगे और आपदा प्रबंधन व आपदा आने की संभावनाओं का आंकलन करेंगे।

वन मंत्री जी ने इस मौके पर कहा कि यह दो दिवसीय ‘पहाड़ों में भूस्खलन व उसके उपचार और कटाव नियंत्रण कार्यों पर राष्ट्रीय कार्यशाला’ परियोजना के लक्ष्य को पूरा करने की दिशा में एक कदम है। भू स्खलन के बाद वहां का सरंक्षण भी हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है। अधिकांश पर्वतीय राज्यों की तरह, उत्तराखंड को भी भूस्खलन से भूमि क्षरण के खतरे का सामना करना पड़ रहा है। जोशीमठ में आई आपदा इसका हालिया ज्वलंत उदाहरण है। भूमि संरक्षण हमारी कृषि, वन संसाधन, स्वास्थ्य, हमारे समुदायों और खाद्य सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है।

 

नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी के ज्वाइंट सेक्रेटरी, आईएफएस कुणाल सत्यार्थी ने आपदा प्रबंधन के तरीके बताए। उन्होंने कहा जहां पर आपदा आई है वहां पर नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी की ओर से प्लान तैयार किए जा रहे हैं। आपदा से निपटने के लिए चार चरण में तैयारी होती है। जोशीमठ में आपदा आने के बाद

 

पुनर्निर्माण योजना तैयार हो चुकी है। उन्होंने जोशीमठ में अनियोजित विकास को आपदा से जोड़ा, जोकि कालान्तर में भू स्खलन का प्रमुख कारण साबित हुआ।

 

– आपदा प्रबंधन के लिए बच्चे हो रहे ट्रेंड

कार्यशाला में बताया गया कि पहाड़ी इलाकों पर बसे गांवों के बच्चों को प्रशिक्षित किया जा रहा है ताकि कभी आपदा या बाढ़ आए तो वे तात्कालिक आपकी मदद कर सकते हैं। आपदा प्रबंधन के चार भाग होते हैं। इसमें कम्पेंसेटिव बिल्डिंग ऑफ प्रिपेरडनेस, मिटिगेशन, रिस्पॉन्स रेस्क्यू, रिलीफ और रिकवरी, रिकंस्ट्रेक्शन होता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *